मिरे फ़िक्र ओ फ़न को नई फ़ज़ा नए बाल-ओ-पर की तलाश है जो क़फ़स को यास के फूँक दे मुझे उस शरर की तलाश है है अजीब आलम-ए-सरख़ुशी न शकेब है न शिकस्तगी कभी मंज़िलों से गुज़र गए कभी रहगुज़र की तलाश है मुझे उस जुनूँ की है जुस्तुजू जो चमन को बख़्श दे रंग ओ बू जो नवेद-ए-फ़स्ल-ए-बहार हो मुझे उस नज़र की तलाश है मुझे उस सहर की हो क्या ख़ुशी जो हो ज़ुल्मतों में घिरी हुई मिरी शाम-ए-ग़म को जो लूट ले मुझे उस सहर की तलाश है यूँ तो कहने के लिए चारागर मुझे बे-शुमार मिले मगर जो मिज़ाज-ए-ग़म को समझ सके उसी चारागर की तलाश है मिरे नासेहा मिरे नुक्ता-चीं तुझे मेरे दिल की ख़बर नहीं मैं हरीफ़-ए-मस्लक-ए-बंदगी तुझे संग-ए-दर की तलाश है मुझे इश्क़ हुस्न ओ हयात से मुझे रब्त फ़िक्र ओ नशात से मिरा शेर नग़्मा-ए-ज़िंदगी तुझे नौहागर की तलाश है उसे ज़िद कि 'वामिक़'-ए-शिकवा-गर किसी राज़ से न हो बा-ख़बर मुझे नाज़ है कि ये दीदा-वर मिरी उम्र भर की तलाश है