मिरे सफ़र की हदें ख़त्म अब कहाँ होंगी कि मंज़िलें भी तो आख़िर रवाँ दवाँ होंगी ये फ़ासले जो अभी तय हुए हैं कहते हैं ये क़ुर्बतें तिरे एहसास पर गिराँ होंगी जो दिन को रंग लगें और शब को फूल बनें वो सूरतें कहीं होंगी मगर कहाँ होंगी वो हाथ रूठ गए और वो साथ छूट गए किसे ख़बर थी कि इतनी जुदाइयाँ होंगी सुना तो था मगर इस रम्ज़ को समझते न थे कि तेरी ख़ुश-निगही में भी तल्ख़ियाँ होंगी तलाश थी गोहर-ए-दर्द की न जानते थे कि बहर-ए-दिल में वो गहराइयाँ कहाँ होंगी वो आज अंजुमन-ए-आम बन के जागें हैं वो ख़ल्वतें जो कभी तेरी राज़-दाँ होंगी हमारे दम से है रौशन दयार-ए-फ़िक्र-ओ-सुख़न हमारे बाद ये गलियाँ धुआँ धुआँ होंगी ये अहद वो है कि मेरी वफ़ा के क़िस्सों में तिरी जफ़ा की हिकायात भी बयाँ होंगी चले चलो कि दयार-ए-ख़िरद के उस जानिब सुकूँ की छाँव में ख़्वाबों की बस्तियाँ होंगी तू राह-ए-शौक़ में तन्हा नहीं ठहर 'बाक़र' कि तेरे साथ अभी जग-हँसाइयाँ होंगी