मिरे साक़ी इक ऐसा दौर-ए-साग़र पियूँ जी भर के अश्क-ए-दीदा-ए-तर जमाल-ए-दोस्त यूँ हो जल्वा-फ़रमा गिरें मेरी नज़र से माह-ओ-अख़तर हवाएँ ले उड़ें ज़ुल्फ़ों की ख़ुशबू ये दुनिया हो फ़ज़ा-ए-ऊद-ओ-अंबर तिरे क़ुर्ब-ए-शमीम-आरा के सदक़े मिरी हर साँस हो जाए मोअ'त्तर धड़कता है मिरा दिल बे-तहाशा लरज़ती है अगर शाख़-ए-गुल-ए-तर चमकता जा चमकता जा मुसलसल तमन्नाओं के ऐ माह-ए-मुनव्वर यहाँ हैं फूल कम काँटे ज़ियादा तो फिर हो जाइए काँटों के ख़ूगर इसी उम्मीद पर कट जाए या रब कभी होगा सुकून-ए-दिल मयस्सर मुझे शे'रों में कह देना है 'मग़मूम' गुज़रती है जो लम्हा लम्हा दिल पर