मिरे सुख़न को नया मोड़ देने आया था सहारा दे के मुझे छोड़ देने आया था ये क्या अजब है कि माँगी थी हम ने जिस से भीक वो चाहतों का महल फोड़ देने आया था मैं जिस के वास्ते अब तक अज़ाब-ए-जाँ झेलूँ वो ख़ुश-नसीब मुझे तोड़ देने आया था किसी ने उस को मोहब्बत में दर्द बख़्शा था वो बेवफ़ाई मुझे मोड़ देने आया था वो जाते जाते मुझे किर्चियों में बाँट गया जो कह रहा था मुझे जोड़ देने या था