मिरी क़िस्मत में वस्ल उस का अगर ऐ आसमाँ होता तो तू भी मेहरबाँ होता ख़ुदा भी मेहरबाँ होता सितम के बा'द होता है करम भी ये अगर सच है मिरे दिल पर भी ऐसा ही सितम ऐ जान-ए-जाँ होता बलाएँ ले के दुश्मन मर गया मेरी बला समझे समझ में मेरी जब आता तमाशा ये यहाँ होता ज़मीं पर सोने वालों को हिक़ारत से न ठुकराता हमारी तरह गर्दिश में जो तू ऐ आसमाँ होता चमन ऊदी घटा साक़ी सुराही और पैमाना ये सब सामान होते शैख़ का फिर इम्तिहाँ होता सुना है फ़स्ल-ए-गुल आई हुई फिर गुलशन-आराई चमन में काश अपना भी क़फ़स ऐ बाग़बाँ होता वो मेरा रो के कहना उन के 'शंकर' हँस के फ़रमाना अरे उल्फ़त में कोई भी नहीं है शादमाँ होता