मिसाल-ए-साया मोहब्बत में जाल अपना हूँ तुम्हारे साथ गिरफ़्तार-ए-हाल अपना हूँ सरिश्क-ए-सुर्ख़ को जाता हूँ जो पिए हर-दम लहू का प्यासा अलल-इत्तिसाल अपना हूँ अगरचे नश्शा हूँ सब में ख़ुम-ए-जहाँ में लेक ब-रंग-ए-मय अरक़-ए-इंफ़िआ'ल अपना हूँ मिरी नुमूद ने मुझ को किया बराबर ख़ाक मैं नक़्श-ए-पा की तरह पाएमाल अपना हूँ हुई है ज़िंदगी दुश्वार मुश्किल आसाँ कर फिरूँ चलूँ तो हूँ पर मैं वबाल अपना हूँ तिरा है वहम कि ये ना-तवाँ है जामे में वगर्ना मैं नहीं अब इक ख़याल अपना हूँ बला हुई है मिरी गो का तब्-ए-रौशन 'मीर' हूँ आफ़्ताब व-लेकिन ज़वाल अपना हूँ