तुझ से गर वो दिला नहीं मिलता ज़हर भी तुझ को क्या नहीं मिलता जिस को वो ज़ुल्फ़ मार डाले है सर-ए-मू ख़ूँ-बहा नहीं मिलता और सब कुछ मिले है दुनिया में लेकिन इक आश्ना नहीं मिलता दिल-ए-दीवाना रात से गुम है कहीं उस का पता नहीं मिलता शैख़ कलबे से उठ निकल बाहर घर में बैठे ख़ुदा नहीं मिलता दर्द-ओ-ग़म को भी है नसीबा शर्त ये भी क़िस्मत सिवा नहीं मिलता इक ने पूछा ये 'मुसहफ़ी' से भला क्यूँ तू ऐ बेवफ़ा नहीं मिलता हँस के बोला कि ओ मियाँ उस से क्या करूँ दिल मिरा नहीं मिलता