मिस्ल-ए-बुलबुल ज़मज़मों का ख़ुद यहाँ इक रंग है अरग़नूँ इस अंजुमन में ख़ारिज-अज़-आहंग है हर ख़याल अपना है याँ इक मुतरिब-ए-शीरीं-नवा हर नफ़स सीने में इक मौज-ए-सदा-ए-चंग है हर तसव्वुर है मिरा 'अक्स-ए-जमाल-ए-रू-ए-दोस्त मेरा हर मजमू’आ-ए-वह्म इक गुल-ए-ख़ुश-रंग है लौह-ए-दिल हर जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ से है मा'नी-पज़ीर हर रग-ए-अंदेशा नक़्श-ए-ख़ामा-ए-अर्ज़ंग है 'अक्स तेरा पड़ के इस में हो गया पाकीज़ा-तर ऐ बुत-ए-काफ़िर मिरी आँखों में फ़ैज़-ए-गंग है नज़्म-ए-'अकबर' से बलाग़त सीख लें अर्बाब-ए-‘इश्क़ इस्तिलाहात-ए-जुनूँ में बे-बहा फ़रहंग है