यूँ संग न पेड़ों की किसी डाल पे मारो इक जस्त-ए-नज़र पंछियों के हाल पे मारो मुझ पैकर-ए-ख़ामोश में इक शोर छुपा है पत्थर कोई शीशे के ख़द-ओ-ख़ाल पे मारो ऐ ताइरो शायद कि निकल आए कोई राह सब मिल के अगर चोंच सदा जाल पे मारो तारीफ़ करो मेरी अगर सच है मिरी बात गर झूट कहूँ चाँटा मिरे गाल पे मारो माना कि तही-दस्त हूँ ख़ुद्दार हूँ मैं भी यूँ ता'ना मुसलसल न मिरे हाल पे मारो हम ख़ाक-नशीनों की सदा जेब-तलाशी शब-ख़ून कभी अहल-ए-ज़र-ओ-माल पे मारो 'मेराज' उभर आएगी आवाज़ की तहरीर कंकर जो किसी सोए हुए ताल पे मारो