मिज़ाज-ए-दोस्त में कुछ बरहमी नज़र आई मिरे ख़ुलूस में शायद कमी नज़र आई तुम्हारे आने से सारा चमन महक उट्ठा कली कली पे तर-ओ-ताज़गी नज़र आई ये इंक़िलाब-ए-ज़माना है या फुसून-ए-नज़र हँसी भी आप की महबूब सी नज़र आई यही तो दर्द-ए-जुदाई का फ़ैज़ है मुझ पर सिसकती साँस उखड़ती हुई नज़र आई ये ज़ख़्म-ए-इश्क़ का एहसाँ है राह-ए-उल्फ़त में उदास दिल में भी इक रौशनी नज़र आई है पुर-फ़रेब ये तर्ज़-ए-अमल हसीनों का ज़रा सी छेड़ पे वारफ़्तगी नज़र आई हुजूम-ए-माह-वशाँ में 'अज़ीम' रह के मुझे क़दम क़दम पे बड़ी बेबसी नज़र आई