पुर-कशिश जल्वा-ए-जानाँ है ख़ुदा ख़ैर करे जीते जी मौत का सामाँ है ख़ुदा ख़ैर करे हुस्न-ए-बेपर्दा ख़िरामाँ है ख़ुदा ख़ैर करे इक नए हश्र का सामाँ है ख़ुदा ख़ैर करे नग़्मा-ए-ज़ीस्त की बे-साख़्ता लय को सुन कर दर्द फिर सिलसिला-जुम्बाँ है ख़ुदा ख़ैर करे हर इशारा नए अफ़्कार का आईना है हर सुख़न उक़्दा-ए-पेचाँ है ख़ुदा ख़ैर करे जाने किस रंग पे आ जाए मिरा जोश-ए-जुनूँ आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहाराँ है ख़ुदा ख़ैर करे जिस तसव्वुर से कि घबराई थी मेरी फ़ितरत फिर वही ख़्वाब-ए-परेशाँ है ख़ुदा ख़ैर करे इल्तिबास आप को जब से है वफ़ाओं पे मिरी दिल ग़रीक़-ए-ग़म-ओ-हिरमाँ है ख़ुदा ख़ैर करे बंदा-ए-हिर्स-ओ-हवस आज है मज़हब का नक़ीब कितना बदला हुआ इंसान है ख़ुदा ख़ैर करे जल्वा-ए-दोस्त ने वो सेहर किया है कि 'अज़ीम' दिल शरारों से फ़रोज़ाँ है ख़ुदा ख़ैर करे