मोहब्बत और किसी अंजान से उफ़ उलझना और दिल-ए-नादान से उफ़ अचानक फ़ोन क्या आया किसी का लगी हैं धड़कनें सब कान से उफ़ वो जिस शिद्दत से मुझ को चाहता है चली जाऊँ न अपनी जान से उफ़ मैं उस की ख़्वाहिशों को कैसे टालूँ वो देखे है बड़े अरमान से उफ़ मैं उस की जान हूँ जाऊँ तो कैसे वो जीता है मुझे जी जान से उफ़ मोहब्बत जब से है रूहों में उतरी महकते हैं बदन लोबान से उफ़ 'किरन' इस इश्क़ में इंसाँ तो इंसाँ फ़रिश्ते भी गए ईमान से उफ़