संग-ए-मलामत फेंका होगा शीशा-ए-दिल यूँ टूटा होगा कौन है छत पर कोई नहीं है ख़ौफ़ ने पत्थर फेंका होगा सूखी डाल पे आस का पंछी गहरी सोच में डूबा होगा बस्ती में कोहराम मचा है झील में कोई डूबा होगा झील से किरनें फूट रही हैं चाँद नहाने उतरा होगा जो खिड़की से झाँक रहा है ढलती धूप का टुकड़ा होगा सब से मोहब्बत करते जाओ 'ज़ाकिर' कोई तो अपना होगा