जाने 'आज़ाद' वो दिन फिर कभी आए कि नहीं वो हमें इतनी मोहब्बत से बुलाए कि नहीं फिर मैं दीवाना बनूँ वो मिरा दामन थामे याद तेरी मिरे यूँ नाज़ उठाए कि नहीं फिर हवा ताज़ा न कर दे मेरे भूले हुए ग़म मुझ को पलकों पे तिरी याद बिठाए कि नहीं बारहा गर्दिश-ए-दौराँ में उलझ कर वो भी सोचता है कि मुझे दिल से भुलाए कि नहीं याद कर इश्क़ के वो दौर कि तू ने मैं ने दिल जलाए कि नहीं ख़्वाब लुटाए कि नहीं अब कि इतवार भी 'आज़ाद' न वीराँ गुज़रे तेज़ बारिश है ख़ुदा जाने वो आए कि नहीं