मा'रका अब के हुआ भी तो फिर ऐसा होगा तेरे दरिया पे मिरी प्यास का पहरा होगा उस की आँखें तिरे चेहरे पे बहुत बोलती हैं उस ने पलकों से तिरा जिस्म तराशा होगा कितने जुगनू इसी ख़्वाहिश में मिरे साथ चले कोई रस्ता तिरे घर को भी तो जाता होगा मैं भी अपने को भुलाए हुए फिरता हूँ बहुत आइना उस ने भी कुछ रोज़ न देखा होगा रात जल-थल मिरी आँखों में उतर आया था सूरत-ए-अब्र कोई टूट के बरसा होगा ये मसीहाई उसे भूल गई है 'मोहसिन' या फिर ऐसा है मिरा ज़ख़्म ही गहरा होगा