मुद्दई ख़ुश कि है वो मर्द यगाना पैदा और हमें चाह करे हम सा ज़माना पैदा हर फ़साने में हक़ीक़त का कोई शाइबा है हर हक़ीक़त से बिल-आख़िर है फ़साना पैदा हर जवाँ-क़ल्ब किसी शोख़-नज़र की ज़द में ये वो नख़चीर करे आप निशाना पैदा आँख के वस्फ़ से भी हुस्न नुमायाँ है मगर इश्क़ के दम से तो है आइना-ख़ाना पैदा हो मुक़द्दर में अगर हुस्न-ए-तबीअ'त का सिला आप कर लेते हैं हालात बहाना पैदा ताइर-ए-शौक़-एॉहुमा वो जो करे बाल कुशा हो बयाबान-ए-लक़-ओ-दक़ में ख़ज़ाना पैदा