मुझे तो रंज क़बा-हा-ए-तार-तार का है ख़िज़ाँ से बढ़ के गुलों पर सितम बहार का है कोई निगाह तो क़िंदील सिर्फ़ मंज़िल की चराग़-ए-दिल कोई हर एक रहगुज़ार का है हर एक ज़र्रे को है आफ़्ताब की तौफ़ीक़ हर एक क़तरे में इम्कान आबशार का है हज़ार रंग सुबूही में सौ फ़ुसूँ गुल में मगर जो रूप लब-ओ-आरिज़-ए-निगार का है अगर नशा है तो साक़ी की मस्त आँखों में अगर मज़ा है तो महबूब के कनार का है हमारे इश्क़ की संजीदगी पे तंज़ न कर हमें ख़बर है मगर मसअला वक़ार का है किसी के वस्ल के लम्हे भी ख़ूब थे 'शौकत' मगर जो हिज्र में आलम ये इंतिज़ार का है