मुझ दिये पर ये इक अता रही है ख़ुद मुहाफ़िज़ मिरी हवा रही है लोग सहमे हुए हैं हिजरत से धूल चेहरों पे मुस्कुरा रही है तेरे ईमान का ख़ुदा-हाफ़िज़ तू उसे नाम से बुला रही है शोर हर गाम कामयाब रहा ख़ामुशी ग़म में मुब्तला रही है वक़्त पर कार बन गया सो यहाँ बेबसी दाएरे बना रही है इस तअल्लुक़ पे मौत वाजिब थी दोस्ती दरमियान आ रही है तेरे मुतलाशियों की ख़ैर जिन्हें तीरगी रास्ते बता रही है इस का रद्द-ए-अमल भी ध्यान में रख तू अगर मसअला उठा रही है हम ग़रीबों की उम्र भर 'फ़ैसल' पहली तरजीह बस अना रही है