मुझ को न आज़मा सितम-ए-रोज़गार से मैं तुझ से दूर हूँ न तिरे इख़्तियार से बदलेंगे अहल-ए-दिल न किसी ए'तिबार से सरकार दुश्मनी से नवाज़ें कि प्यार से ये क्या कि सिर्फ़ रंग गुलिस्ताँ बदल दिया हम ने कुछ और भी तो कहा था बहार से यारब ये किस नहज पे हैं दिल के मुआ'मलात हम ग़ैर-मुतमइन से न वो बे-क़रार से आख़िर ख़ुद अपने सामने आना पड़ा हमें उक्ता चुके थे सिलसिला-ए-इंतिज़ार से बरसे हैं किस के ख़ून के बादल चमन चमन लाई कहाँ से रंग ये पूछो बहार से हम रो लिए कि सब्ज़-ओ-गुल में तरी रहे हँसते अगर तो आग बरसती बहार से बे-शक है ना-ख़ुदा की मोहब्बत भी उन के साथ 'अंजुम' ख़ुदा का नाम जो लेते हैं प्यार से