मुझ को उस से नजात भी न रही पास हो कर जो पास ही न रही इल्म था मुझ पे जो गुज़रना था गुफ़्तुगू में वो बात ही न रही रात गुज़री है आज फिर तन्हा आज भी रात रात सी न रही हिज्र में फ़ासला तो लाज़िम था अब तो रिश्ते की आस ही न रही रख के मुझ को कहीं वो भूल गया और मेरी तलाश भी न रही चल 'बशर' ख़ूँ का घूँट ही पी ले पास में अब शराब भी न रही