मुझ पर ऐसी जफ़ा की कसरत की कि उसे ग़ैर ने मलामत की तुम को अपने ख़िराम से मतलब ठोकरें खाए कोई क़िस्मत की वादा-ए-वस्ल-ए-सुब्ह उस से करो कट सके जिस से रात फ़ुर्क़त की अपनी बेदाद को नहीं कहते मेरी फ़रियाद की शिकायत की अब कहाँ हूर ख़ुल्द में वाइ'ज़ तू ने बर्बाद यूँ ही मेहनत की हैं जो दुनिया की ये परी-ज़ादें यही हूरें बनेंगी जन्नत की तर्क-ए-इश्क़ और मैं ग़लत 'सालिक' कौन रोके ज़बान ख़िल्क़त की