मुझे अब नया इक बदन चाहिए और उस के लिए बाँकपन चाहिए मैं ये सोचता हूँ असर के लिए सदा चाहिए या सुख़न चाहिए भटकने से अब मैं बहुत तंग हूँ ज़मीं क़ैद कर ले वतन चाहिए नशे के लिए इक नया शीशा हो और उस में शराब-ए-कुहन चाहिए ये आँखें ये दिल ये बदन है तिरा तुझे और क्या जान-ए-मन चाहिए बहुत तुर्श लगने लगी ज़िंदगी कोई मीठी मीठी चुभन चाहिए