मुझे अफ़्सोस बस इस बात का था जिसे होना था शर्मिंदा ख़फ़ा था ये अंदेशा तो मुझ को हो चुका था बिछड़ना ही मगर क्या रास्ता था बहुत ख़ामोश था जाने से पहले न जाने क्या बताना चाहता था अजब वहशत थी सूने रास्तों पर वो ख़ुद का हाथ थामे चल रहा था मुख़ातिब हूँ अधूरी ख़्वाहिशों से यही वो काम था जो टल रहा था