मुझे इक इक बरस इक इक घड़ी मा'लूम होती है शब-ए-फ़ुर्क़त क़यामत से बड़ी मा'लूम होती है झड़ी अश्कों की मोती की लड़ी मा'लूम होती है निहाँ आँखों में हीरे की कनी मा'लूम होती है नसीहत आज-कल ऐसी बुरी मा'लूम होती है बजाए दोस्ती के दुश्मनी मा'लूम होती है जवानी पर वो आए हैं सितम करने तो दो उन को हक़ीक़त इश्क़-बाज़ी की अभी मा'लूम होती है भरोसा उस बुत-ए-अय्यार के वा'दे पे है तुम को जनाब-ए-दिल मुझे तो ये तड़ी मा'लूम होती है सुधरना अब बहुत दुश्वार है हालात-ए-आलम का क़यामत तक यही अब गड़-बड़ी मा'लूम होती है जो देखा जाए तो पूरे न उतरेंगे किसी मद में मुसलमानों में कोई इक कमी मा'लूम होती है जो मुँह से कह दिया अपने उसे पूरा ही कर दीजे इसी से तो ज़बाँ की पुख़्तगी मा'लूम होती है यक़ीं आता नहीं उन को 'अता' मेरी मोहब्बत का मिरे दिल की लगी भी दिल-लगी मा'लूम होती है