मुझे हयात के साँचों में ढालने वाले कहाँ गए वो समुंदर खंगालने वाले लुढ़क रहा हूँ ढलानों से प्यार की मैं तो न आएँ राह में मुझ को सँभालने वाले हमारे शौक़-ए-फ़रावाँ ने डस लिया हम को कि आस्तीं में थे हम साँप पालने वाले हवा में फेंक न मुझ को समझ के खेल कोई तुझी को आ के लगूँगा उछालने वाले ज़रा सा काम हूँ मैं फिर भी ना-मुकम्मल हूँ यहाँ मिले हैं सभी मुझ को टालने वाले कुआँ हवस का था गहरा कुछ इस क़दर 'अख़्तर' कि ख़ुद ही गिर गए मुझ को निकालने वाले