रास्ते की धूल ने पैरों को ज़ख़्मी कर दिया बहर से माही अलग करना मुझे आता नहीं बैठ जाऊँ दो घड़ी आराम से यारो कहीं ज़िंदगी के दश्त में ऐसा कोई साया नहीं ख़्वाब सा सुंदर बदन था बिस्तर-ए-कमख़ाब पर रात भर फिर भी मिरे दिल ने सुकूँ पाया नहीं छा गई है ख़ामुशी की बर्फ़ मेरे ज़ेहन पर कल्पना के देश में सूरज कभी मरता नहीं नर्म जिस्मों की ख़ुशी आँखों में भर कर रात को सब्ज़ा-ए-ख़ुद-रौ पे 'अख़्तर' मैं कभी सोया नहीं