मुझे याद हैं वो दिन जो तिरी बज़्म में गुज़ारे वो झुकी झुकी निगाहें वो दबे दबे इशारे ये तिरा सुकूत-ए-रंगीं ये अदा-ए-बे-नियाज़ी कहीं बुझ के रह न जाएँ मिरी रूह के शरारे कभी शौक़-ए-ज़िंदगी था कभी लुत्फ़-ए-सरख़ुशी था मगर अब तो जी रहा हूँ तिरी याद के सहारे ये चमन चमन बहारें ये रवाँ-दवाँ हवाएँ इन्हें क्या समझ सकेंगे ग़म-ए-ज़िंदगी के मारे मुझे क्या सुकून मिलता मिरे अश्क कैसे थमते कि मचल रहे हैं दिल में तिरे ग़म के तेज़ धारे कहीं है वजूद-ए-साहिल मुझे कैसे बावर आए मिरी कश्ती-ए-तमन्ना न लगी कभी किनारे शब-ए-इंतिज़ार गुज़री मिरी ज़िंदगी न बदली वही 'होश' मेरे आँसू वही डूबते सितारे