रब ने अता किए हैं मुक़द्दर अलग अलग होते हैं शोहरतों के भी मंज़र अलग अलग मायूस वो भी और परेशान मैं भी हूँ खाई बिछड़ के चोट दिलों पर अलग अलग इक घर को अपने ख़ून से सींचा था बाप ने बेटे ने पल में कर दिए दो घर अलग अलग दो लोग बनना चाहते थे मीर-ए-कारवाँ दोनों की ज़िद पे हो गए लश्कर अलग अलग शबनम बने हुए कभी शो'ला बने हुए अश्कों के भी मिज़ाज हैं रुख़ पर अलग अलग ज़ख़्मी किया गया मुझे लफ़्ज़ों के वार से होते हैं दोस्तों के भी ख़ंजर अलग अलग हर कोई कर रहा है नुमाइश वजूद की दरिया अलग अलग तो समुंदर अलग अलग अंदाज़ सिर्फ़ तेरा नहीं मुनफ़रिद 'हिलाल' सारे सुख़नवरों के हैं तेवर अलग अलग