मुझे ये जचते नहीं तिश्ना-काम जाते हुए शिकोह-ए-क़स्र उठा लें ग़ुलाम जाते हुए हवा थमी तो दरीचों पे मर्ग फैल गई सुकूत छोड़ गया ख़ुश-कलाम जाते हुए किसी ने आते हुए तेग़ ख़ाक पर रगड़ी किसी ने पानी में फेंकी नियाम जाते हुए सुकूत-याफ़ता वो होंट मार देते मुझे अगर वो आँख न करती कलाम जाते हुए मक़ाम-ए-शुक्र मिरी रात बच गई उस से जो ले उड़ा है मिरे सुब्ह-शाम जाते हुए