वो जिस के लिए मौत का फ़रमान हुआ है उस की ये ख़ता है कि वो सच बोल रहा है क़द पर नहीं मौक़ूफ़ यहाँ दिल की बड़ाई छोटा तो वो लगता है मगर दिल का बड़ा है साँसों में बसी एक तिरी चाह की ख़ुशबू तेरा ही तसव्वुर मिरी रग रग में रचा है लालच भी बुरी चीज़ हसद भी है बुरी शय मैं ने तो यही अपने बुज़ुर्गों से सुना है साथी तिरे तूफ़ान से लड़ने भी लगे हैं और तू है कि साहिल पे खड़ा सोच रहा है बैसाखियाँ रखते हैं सभी तेरे नगर में 'साजिद' ही अकेला है जो पैरों पे खड़ा है