मुझ को ये जादू आ जाए By Ghazal << रंग-ओ-निकहत की औक़ात क्या... ये क्या मालूम था बरगश्ता ... >> मुझ को ये जादू आ जाए तुझ को सोचूँ तू आ जाए कूचे में फिरता हूँ तेरे शायद बाहर तू आ जाए ऐसे ऐसे शेर कहूँ मैं लफ़्ज़ों में ख़ुशबू आ जाए जिस शय को मैं हाथ लगाऊँ उस में वो ख़ुश-रू आ जाए काश कभी बीमार पड़ूँ मैं मुझ से मिलने तू आ जाए Share on: