मुझ से दिल आप का मुकद्दर है ऐसा जीना मुझे भी दूभर है क्या क़लम-कारियाँ हैं क़ुदरत की एक पत्ती हज़ार दफ़्तर है हाथ आए तो दिल में रख लूँ मैं कैसा प्यारा तुम्हारा ख़ंजर है अपनी शह-रग का ख़ूँ पिलाऊँ इसे दो मुझे ये तुम्हारा ख़ंजर है ये इसी के लिए हुआ पैदा आप की तेग़ है मिरा सर है भूलती ही नहीं है याद तिरी रात भर है ये शग़्ल दिन भर है अपनी ही शक्ल के वो आशिक़ हैं बस नज़र उन की आइने पर है देख कर उन को जी गया आशिक़ ये है सूरत जो रूह-परवर है हाथ ख़ाली अगर हैं क्या पर्वा जान हाज़िर है दिल तवंगर है मर गया आज आप का आशिक़ अब न वो शोर है न वो शर है शायरी का मज़ा गया 'अकबर' अब हुजूम आफ़तों का दिल पर है