मूसा हैं हमीं जल्वा-ए-दीदार हमीं हैं हैं तूर हमीं नूर हमीं नार हमीं हैं मंसूर हमीं हैं सुख़न-ए-यार हमीं हैं क़ाज़ी हैं हमीं शरअ' हमीं दार हमीं हैं काफ़िर जिसे कहते हैं हमीं से है इशारा मोमिन है ग़रज़ जिस से वो दीदार हमीं हैं फ़िरदौस अगर है तो हमारे ही लिए है दोज़ख़ के अगर हैं तो सज़ा-वार हमीं हैं हैं दाद-ओ-सितद दोनों ये बंदे ही की शानें बाए' हैं हमीं और ख़रीदार हमीं हैं मर जाने से जो हिज्र में ख़ुश है वो हमीं हैं जीने से जो फ़ुर्क़त में है बेज़ार हमीं हैं क़ासिद हैं हमीं और हमीं कातिब-ए-नामा दिल-दार हमीं नामा-ए-दिलदार हमीं हैं नासूत जो मस्कन है तो लाहूत घर अपना ख़ल्वत में हमीं बरसर-ए-बाज़ार हमीं हैं मश्शाता हमीं और हमीं शाना-ओ-गेसू आईना हमीं अक्स-ए-रुख़-ए-यार हमीं हैं कहते हैं जिसे कुफ़्र वो इक शान है अपनी इस्लाम जिसे कहते हैं अबरार हमीं हैं नाक़ूस की आवाज़ हमारी ही सदा है तकबीर के अल्फ़ाज़ में हर बार हमीं हैं दरिया में हमीं और हमीं मौज-ओ-सदफ़ हैं क़तरा हैं हमीं गौहर-ए-शहवार हमीं हैं 'अकबर' जो है मस्जूद-ए-दो-आलम वो वही है सज्दे के अगर हैं तो सज़ा-वार हमीं हैं