मुख़ालिफ़ीन भी हों तो सलाम करना है हमें ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत से काम करना है यही है ख़्वाहिश-ओ-अरमाँ कि सब के काम आऊँ यही है काम ज़रूरी ये काम करना है ये ज़िंदगी है ख़ुद एहसान इस के बदले में ख़ुदा का शुक्र हमें सुब्ह-ओ-शाम करना है न फूट डाल सकेगा कोई हमारे बीच हम एक हैं हमें चर्चा ये आम करना है ग़मों से लाख हूँ मजबूर फिर भी दुनिया में सभी को पेश मसर्रत का जाम करना है दुखी दिलों के मदद-गार जिस में हों 'साहिर' जहाँ में हम को वो राइज निज़ाम करना है