मुमकिन नहीं जुनूँ में मगर चाहता हूँ मैं या'नी दुआ से पहले असर चाहता हूँ मैं सब से जुदा मज़ाक़-ए-नज़र चाहता हूँ मैं शब ही न जिस की हो वो सहर चाहता हूँ मैं ऐ चश्म-ए-मस्त-ए-नाज़ कोई जुर्म तो नहीं दीवानगी से होश अगर चाहता हूँ मैं इक इल्तिजा है सिर्फ़ मिरे मालिक-ए-हयात जो ख़म न हो जहाँ से वो सर चाहता हूँ मैं फिर कर लिया बहार में तामीर-ए-आशियाँ फिर रौशनी-ए-बर्क़-ओ-शरर चाहता हूँ मैं अपने तसव्वुरात-ए-मोहब्बत की बज़्म में आलम तमाम पेश-ए-नज़र चाहता हूँ मैं फिर आएँ हादसात-ए-ज़माना मिरे क़रीब उन का जमाल अपनी नज़र चाहता हूँ मैं क्यों नागवार अहल-ए-चमन को है हम-नशीं अपने लिए हयात अगर चाहता हूँ मैं पैक-ए-तलब को मंज़िल-ए-आख़िर की है तलाश मुद्दत के बाद अपनी ख़बर चाहता हूँ मैं फिर उन के देखने की तमन्ना नज़र को है तारीकियों में नूर-ए-सहर चाहता हूँ मैं