मुंतशिर ज़र्रों को यकजाई का जोश आया तो क्या चार दिन के वास्ते मिट्टी को होश आया तो क्या आरज़ी हैं मौसम-ए-गुल की ये सारी मस्तियाँ लाला गुलशन में अगर साग़र-ब-दोश आया तो क्या दौर-ए-आख़िर बज़्म-ए-दुनिया का है जाम-ए-ख़ून-ए-दिल तैश इस महफ़िल में बन कर बादा-नोश आया तो क्या हद्द-ए-हैरत ही में रक्खा ज़ो'फ़ ने इदराक को पैकर-ए-ख़ाकी को इस 'आलम में होश आया तो क्या