रहा करता है मुर्ग़-ए-फ़ह्म शाकी By Ghazal << सब्र रह जाता है और 'इ... मुंतशिर ज़र्रों को यकजाई ... >> रहा करता है मुर्ग़-ए-फ़ह्म शाकी नई तहज़ीब के अंडे हैं ख़ाकी छुरी से उन की कटवा कर फ़लक ने ख़ुदा जाने हमारी नाक क्या की अभी इंजन गया है इस तरफ़ से कहे देती है तारीकी हवा की रही रात एशिया ग़फ़्लत में सोती नज़र यूरोप की काम अपना किया की Share on: