मुसलमाँ देख कर अब दिल की हैरानी नहीं जाती कुजा सीरत कि सूरत तक भी पहचानी नहीं जाती हदीस-ए-ग़म सुनाने से परेशानी नहीं जाती मगर कुछ लोग हैं जिन की ये नादानी नहीं जाती जनाब-ए-शैख़ बोल उट्ठें ब-हर मबहस ब-हर मौक़ा कि उन की ख़ू-ए-पिंदार-ए-हमा-दानी नहीं जाती सुना सैल-ए-तमन्ना में हज़ारों शहर-ए-दिल डूबे मगर फिर भी तमन्नाओं की तुग़्यानी नहीं जाती सजाया हम ने तस्वीर-ए-बुताँ से ख़ाना-ए-दिल को मगर बा-ईं हमा उस घर की वीरानी नहीं जाती मोहम्मद-मुस्तफ़ा की शान-ए-रिफ़अत कोई क्या जाने जहाँ वो हैं वहाँ तक फ़िक्र-ए-इंसानी नहीं जाती किया लोगों ने गर्द-आलूद कितना चेहरा-ए-माज़ी 'नज़र' हैरत है फिर भी इस की ताबानी नहीं जाती