ये सुनते ही ख़ुशी से हम भी पीछे आ गए हैं वो साफ़ अंदाज़ में सब कुछ हमें फ़रमा गए हैं सुहूलत से किनारा कर के कार-ए-ख़ैर में भी सितम सारे हमारी ज़ात पर वो ढा गए हैं इक ऐसा हादिसा दर-पेश आया था यहाँ पर परिंदे ही नहीं अश्जार भी घबरा गए हैं भुलाने का कोई भी रास्ता छोड़ा नहीं है अरे पागल तिरे ज़ेहन-ओ-गुमाँ पर छा गए हैं ख़ुशी से तोड़ या महफ़ूज़ रख मर्ज़ी है तेरी खिलौने हैं तिरे हाथों में जो हम आ गए हैं फ़क़त दा'वे नहीं तू जान भी देता है हम पर तिरे नख़रे हमें कुछ इस सबब से भा गए हैं