तसल्ली दे के बहलाया गया हूँ सुकूँ की राह पर लाया गया हूँ अदम से जानिब-ए-गुलज़ार-ए-हस्ती मैं ख़ुद आया नहीं लाया गया हूँ कड़ी मंज़िल अदम की है इसी से यहाँ दम भर को ठहराया गया हूँ हक़ीक़त का हुआ है बोल-बाला मैं जब सूली पे लटकाया गया हूँ हक़ीक़त से मैं अफ़्साना बना कर हर इक महफ़िल में दोहराया गया हूँ ख़ुदा मालूम उन की अंजुमन से मैं ख़ुद उट्ठा कि उठवाया गया हूँ 'रियाज़' अपना था शेवा गुल-परस्ती मगर काँटों में उलझाया गया हूँ