मुश्क-दानी में ही ख़ुशबू को दबाए रखना उस से मुश्किल है मोहब्बत को छुपाए रखना कर के छोड़ेगी वो नफ़रत को कभी ख़ाकिस्तर दिल में इक आग मोहब्बत की लगाए रखना मैं कभी भी तिरी दहलीज़ पे आ सकता हूँ अपनी पलकों को सर-ए-राह बिछाए रखना आज-कल अहल-ए-सियासत का हुनर है ये तो पस-ए-मुस्कान कुदूरत को छुपाए रखना गरचे हालात मोहब्बत में हों कुछ भी लेकिन तुम पे लाज़िम है क़दम अपने जमाए रखना ज़ालिमों को है उजाले की ज़रूरत 'हादी' अभी छप्पर कही बस्ती में जलाए रखना