मुश्किलों से मुक़ाबला होगा ज़िंदगानी में और क्या होगा ग़म के मारो ये सोचते क्यों हो ख़त्म कब ग़म का सिलसिला होगा दर्द-ए-दिल की दवा न कीजिएगा दर्द कुछ और भी सिवा होगा साफ़-गोई को हम ने छोड़ दिया अब किसी को न कुछ गिला होगा मेरे लहजे में आज तल्ख़ी है मेरी बातों से तू ख़फ़ा होगा चाँदनी फिर ज़रूर बरसेगी चाँद बादल में छुप गया होगा किस को फ़ुर्सत है कौन सोचे ये जाने किस हाल में 'ज़िया' होगा