मुज़्तरिब और हुआ ज़ौक़-ए-नज़र आख़िर-ए-शब बंद उम्मीद के सब हो गए दर आख़िर-ए-शब ऐ असीरान-ए-क़फ़स मेरे अलावा तुम को कोई देगा न बहारों की ख़बर आख़िर-ए-शब हम से होता भी इलाज-ए-दिल-ए-बेताब तो क्या और बढ़ता ही गया दर्द-ए-जिगर आख़िर-ए-शब जो ग़रीबों के हैं हमदर्द उन्हें याद नहीं कितने लोगों के जलाए गए घर आख़िर-ए-शब ज़िंदगी क़ाबिल-ए-ताज़ीम बनी दुनिया में उन के जलवों से जो टकराई नज़र आख़िर-ए-शब फ़हम-ओ-इदराक के अज्ज़ा-ए-परेशाँ की क़सम रंग लाया मिरे नालों का असर आख़िर-ए-शब इस तरह बह चले आँखों से मुसलसल आँसू हो 'सहर' जैसे सितारों का सफ़र आख़िर-ए-शब