न गुल खिले हैं न गर्दिश में जाम आया है ये कैसा अब के चमन में निज़ाम आया है अमल से ज़र्फ़ से ईसार से मोहब्बत से हमारा दिल ही ज़माने के काम आया है अता हुआ है जिन्हें अज़्म सरफ़रोशी का उन्हीं को दार-ओ-रसन का सलाम आया है लिबास-ए-शर्म-ओ-हया नज़्र-ए-मस्लहत कर के ये कौन देखना बाला-ए-बाम आया है हम अपने दर्द को भी दर्द कह नहीं सकते कोई बताए ये कैसा मक़ाम आया है तिलिस्म टूट गया है 'सहर' जुदाई का निगाह-ए-मस्त का जब भी पयाम आया है