म्यान से तेरा अगर ख़ंजर निकल कर रह गया मेरे भी दिल में बड़ा अरमाँ सितमगर रह गया क्या फ़क़त कूचे में तेरे मेरा बिस्तर रह गया बल्कि मुझ से छूट कर दिल ही कहीं पर रह गया मय-कशों के दौर में बैठे थे हम भी बा-नसीब अब तो ख़ाली हाथ में साक़ी के साग़र रह गया मेरे किस अरमाँ ने मेरे क़त्ल से रोका तुझे जो कमर से तेरे यूँ ख़ंजर निकल कर रह गया दर तक उस के मैं पहुँच जाऊँगा ये कहता हुआ तेरे कूचे में मिरा भूले से बिस्तर रह गया मौत आई है मुझे लेने को ये कह दे कोई रहने वाला मर गया उजड़ा हुआ घर रह गया वाए-नाकामी कि उड़ने भी न पाया था अभी बाँधते ही नामा बाज़ू-ए-कबूतर रह गया दिल की मायूसी न पूछो जब वो पहलू से उठे कर ही क्या सकता था तड़पा और तड़प कर रह गया सब को लौह-ए-क़ब्र मेरा भी यूँ ही देगी निशाँ आइने से जिस तरह नाम-ए-सिकंदर रह गया इश्क़ उस के गेसुओं का क्या हुआ 'आलिम' मुझे सारे आलम का जो सौदा था मिरे सर रह गया