न आएँगे लौट कर वो फिर भी मैं उम्र भर इंतिज़ार कर लूँ इधर तो आ ऐ ग़म-ए-मोहब्बत तुझे ही जी भर के प्यार कर लूँ न जाने कब तक ढले शब-ए-ग़म न जाने सुब्ह-ए-उमीद कब हो क़दम क़दम पर बिछा लूँ तारे नफ़स नफ़स शो'ला-बार कर लूँ कभी अयादत हुई न उस से कभी किसी से न हाल पूछा मरीज़-ए-ग़म पर वो मेहरबाँ है ये कैसे मैं ए'तिबार कर लूँ अभी सलामत है अज़्म-ए-मोहकम अभी है बाक़ी लहू रगों में उलट के रख दूँ निज़ाम-ए-गुलशन ख़िज़ाँ ब-रंग-ए-बहार कर लूँ ज़रा ठहर ऐ जुनून-ए-उल्फ़त तू ले चला है कहाँ अभी से मता-ए-दिल जब लुटा चुका हूँ तो जाँ भी उन पर निसार कर लूँ यहीं बिछड़ के मैं रो पड़ा था यहीं है भीगा ज़मीं का आँचल यहीं फिर उस से मिलन भी होगा यहीं पे मैं इंतिज़ार कर लूँ नहीं है बाक़ी अगर पतंगे तो रह के तन्हा उदास होगी लहद से उठ कर 'असीर' मैं ही तवाफ़-ए-शम्अ'-ए-मज़ार कर लूँ