सन्नाटा आवाज़ बना है दर्द का यूँ इज़हार हुआ है यादों ने जब ली है करवट ज़ख़्मों का हर बंद खुला है इस नगरी का रहने वाला क़त्ल-ए-वफ़ा पर ख़ुश लगता है ख़त पढ़ने में काँप रहे हो ऐसा इस में क्या लिक्खा है बरसों की उल्फ़त का रिश्ता इक लम्हे में टूट गया है युग युग से लम्हा बेचारा अपनी मंज़िल ढूँड रहा है 'शौक़' जुनून-ए-इश्क़ सलामत ज़ंजीरों की क्या पर्वा है