न रास्ता कोई उस का न उस का ख़्वाब कोई पड़ा न इश्क़ पे ऐसा कभी अज़ाब कोई किसी का हुस्न था यूँ आँसुओं के दामन में चराग़ जलता हो जिस तरह ज़ेर-ए-आब कोई ज़माने-भर की अताओं में सिर्फ़ उस का करम करम भी ऐसा कि जिस का नहीं जवाब कोई तमाज़त-ए-ग़म-ए-दुनिया में उस को याद किया तो दश्त-ए-दिल पे बरसता रहा सहाब कोई अगर फ़सानों के पीछे कोई हक़ीक़त है तो ख़्वाब और भी होगा वरा-ए-ख़्वाब कोई ये लोग बोल रहे हैं मगर फ़ज़ा है ख़मोश हमारे अहद में आना है इंक़लाब कोई वो जब हुजूम के नर्ग़े में और तन्हा था तो देखने की थी फिर उस की आब-ओ-ताब कोई अब उस की बज़्म से आ कर ख़मोश रहता है था बारगाह में इक रोज़ बारयाब कोई हर एक राह से हट कर गुज़रते हो 'आदिल' तो इस तरह से मिला है कभी जनाब कोई