न शर्त कोई है अपनी न कोई सौदा है हमारे साथ अगर तुम चलो तो अच्छा है लगी है आग कहीं या चराग़ जलते हैं यहाँ से दूर जो देखें तो कुछ उजाला है हमारे हाल पे आँसू हैं उस की आँखों में मगर ख़याल सा होता है ये भी धोका है गया तो सदमा नहीं था गुमाँ भी तोड़ गया हमें गुमान यही था कि वो हमारा है बिछड़ के तुझ से नहीं हम को रंज-ए-तन्हाई हमारे साथ तो अब वहशतों का मेला है अगर मिले तो कभी उस से पूछना 'आदिल' हमें बताओ कोई याद तुम को आता है