न वो ख़िज़ाँ रही बाक़ी न वो बहार रही रही तो मेरी कहानी ही यादगार रही वही नज़र है नज़र जो बईं-हमा पस्ती सितारा-गीर रही कहकशाँ शिकार रही शब-ए-बहार में तारों से खेलने वाले किसी की आँख भी शब भर सितारा-बार रही तमाम उम्र रहा गरचे मैं तही-पहलू बसी हुई मिरे पहलू में बू-ए-यार रही कोई अज़ीज़ न ठहरा हमारे दफ़्न के बाद रही जो पास तो शम्अ सर-ए-मज़ार रही वो फूल हूँ जो खिला हो ख़िज़ाँ के मौसम में तमाम उम्र मुझे हसरत-ए-बहार रही कभी न भूलेंगी उस शब की लज़्ज़तें 'अख़्तर' कि मेरे सीने पे वो ज़ुल्फ़-ए-मुश्क-बार रही